17-Jun-2024

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पतंजलि समूह पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए रामदेव और सहयोगियों ने टैक्स-फ्री चैरिटेबल संस्था का इस्तेमाल किया

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नई दिल्ली, द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक जांच में पता चला है कि बाबा रामदेव और उनके सहयोगी पैसा लगाने और निवेश करने के लिए एक टैक्स-फ्री चैरिटेबल संगठन का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें पतंजलि द्वारा अधिगृहित दिवालिया कंपनी रुचि सोया का निवेश भी शामिल है.

पतंजलि समूह से जुड़े लोगों ने 2016 में योगक्षेम संस्थान नामक एक गैर-लाभकारी चैरिटी कंपनी की स्थापना की थी. इसका उद्देश्य था योग और आयुर्वेद केंद्रों की स्थापना और प्रचार करना, जिससे इसे टैक्स-फ्री का दर्जा प्राप्त हुआ. रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच के दौरान प्राप्त कंपनी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि इस गैर-लाभकारी संस्था ने छह वर्षों तक एक भी रुपये का दान नहीं किया. इसका उपयोग केवल करोड़ों रुपये के निवेश के लिए किया गया था, जिसमें रुचि सोया में रामदेव के करीबी सहयोगियों द्वारा किया गया निवेश भी शामिल था.
टैक्स कानूनों के अनुसार, ऐसी चैरिटेबल संस्थाओं के लिए व्यावसायिक निवेश और लाभ के लिए व्यापार करना प्रतिबंधित है, ताकि इन संस्थाओं को टैक्स दिए बिना लाभ कमाने के साधन के रूप में उपयोग न किया जा सके. इससे पहले, छोटे-मोटे उल्लंघनों के लिए भी टैक्स अधिकारी कई गैर-लाभकारी संस्थाओं की जांच करके उन पर मुकदमा चला चुके हैं. लेकिन रामदेव की चैरिटेबल कंपनी जांच से बची रही, बावजूद इसके कि उसने कोई ऐसा धर्मार्थ (चैरिटी) कार्य नहीं किया जो उसे करना था, बल्कि कंपनी का प्रयोग केवल निवेश इधर से उधर करने के लिए किया गया.
इससे पहले की जांच में हमने पाया था कि पतंजलि समूह ने कई ऐसी संदिग्ध कंपनियां बनाई थीं जिनका राजस्व शून्य था. लेकिन इन कंपनियों के माध्यम से चोरी-छुपे पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण अरावली की वनभूमि की खरीद-फरोख्त हुई थी. उन्होंने गलत कहा था कि इन जमीनों पर आयुर्वेदिक दवाओं और उत्पादों के निर्माण के लिए कारखाने स्थापित किए जाने थे.
हालांकि यह बता पाना कठिन है कि ऐसी संदिग्ध कंपनियां क्यों बनाई जाती हैं जो अपना कथित काम नहीं करती. लेकिन कुछ कारण स्पष्ट हैं, इन कंपनियों के ज़रिए असली मालिकाना हक़ छुपाया जा सकता है. चूंकि पैसा कई संस्थाओं से होकर गुज़रता है इसलिए कम से कम टैक्स देने की संभावना बढ़ जाती है. एकाउंटेंट इसे ‘कर नियोजन’ यानि ‘टैक्स प्लानिंग’ कहते हैं.
योगक्षेम संस्थान ने रुचि सोया (अब पतंजलि फूड्स) में किए गए निवेश से भारी कमाई की और उस पर टैक्स भी दिया. लेकिन कंपनी ने उन शर्तों को पूरा नहीं किया जिनके आधार पर उसे टैक्स-फ्री स्टेटस दिया गया था, और बावजूद इसके कंपनी का यह दर्जा उससे वापस नहीं लिया गया.
हमने आचार्य बालकृष्ण और योगक्षेम संस्थान को प्रश्न भेजकर पूछा कि क्यों इस गैर-लाभकारी कंपनी ने कोई चैरिटी नहीं की और केवल निवेश के लिए इस्तेमाल किया, लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
रामदेव ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार पर उंगली उठाकर भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार का पक्ष लेकर और कई मौकों पर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाकर सत्ता से निकटता बनाई. उन्होंने अपनी छवि बदली और अपने कारोबार को एक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से लड़ने वाले एक देशभक्त ब्रांड के रूप में  पेश किया.
हालांकि, रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा देखे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि रामदेव और उनके सहयोगी भी एकाउंटेंट्स और वकीलों की टीमों की मदद से कानून से बचते हुए अपने मुनाफे को अधिकतम करने के लिए अक्सर वही रणनीतियां अपनाते हैं जैसा की अन्य व्यापारी करते हैं.
योगक्षेम संस्थान को चलने वाले एक प्रमुख व्यक्ति, रामदेव के करीबी, आचार्य बालकृष्ण हैं जिनका पतंजलि बिजनेस समूह पर भी पूरा  नियंत्रण है.
2016 में एक पत्रकार के साथ बातचीत में बालकृष्ण ने कहा था, ‘हमें लोगों की सेवा करने के लिए धन की जरूरत है.’ उसी साल, पतंजलि समूह से जुड़े चार लोगों – आचार्य प्रद्युम्न, फूल चंद्र, सुमन देवी और सविता आर्या ने योगक्षेम संस्थान की स्थापना की. इस गैर-लाभकारी संस्था की प्रारंभिक पूंजी चार लाख रुपये थी.
फूल चंद्र अब स्वामी परमार्थदेव के नाम से जाने जाते हैं. और भले ही वह प्रत्यक्ष तौर पर आध्यात्मिक गुरु बन गए हों, वर्षों से वह निर्माण कंपनी प्लेज़ेंट विहार प्राइवेट लिमिटेड और पतंजलि नेचुरल बिस्कुट प्राइवेट लिमिटेड जैसी एक दर्जन से अधिक लाभकारी कंपनियों में निदेशक रहे हैं.
सुमन देवी अब साध्वी देवप्रिया हैं. अपने नए नाम से वह रामदेव के कारोबारी समूह की एक और कंपनी- वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड में निदेशक हैं.
रामदेव और उनके सहयोगियों द्वारा मुनाफा कमाने के लिए चलाई जाने वाली अधिकांश अन्य कंपनियों के विपरीत, योगक्षेम संस्थान को औपचारिक रूप से एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था.
इसके कॉरपोरेट रिकॉर्ड कहते हैं कि कंपनी का प्राथमिक उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों के लिए योग केंद्र, कौशल विकास के लिए शैक्षणिक संस्थान और स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करना और उन्हें बढ़ावा देना है. इसमें यह भी कहा गया है कि कंपनी बच्चों और युवाओं में प्रतिभा का विकास करेगी जिससे वह अच्छे नागरिक बनेंगे और उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास होगा.
इसका एक उद्देश्य ऐसा ही काम कर रहे दूसरे संगठनों को सहायता और डोनेशन देना भी था. तो, क्या इस गैर-लाभकारी संस्था ने उसे दी गई टैक्स छूट को उचित ठहराते हुए समाज के लिए पर्याप्त परोपकारी कार्य किए?
यदि कंपनी के गठन के बाद से उसके वित्तीय रिकॉर्ड देखे जाएं, तो पता चलता है कि इसने कभी भी वंचित लोगों के लिए कोई योग या स्वास्थ्य केंद्र या शैक्षणिक संस्थान नहीं बनाए.
स्थापना के दूसरे वर्ष से ही योगक्षेम का उपयोग रामदेव के सहयोगियों के निवेशों को घुमाने के लिए किया जाने लगा. सरकार को सौंपे गए योगक्षेम के रिकॉर्ड में कहा गया है कि 5 जनवरी, 2018 को इसे बालकृष्ण, (रामदेव के एक अन्य करीबी सहयोगी) दिवंगत स्वामी मुक्तानंद और पतंजलि समूह से जुड़ी छह अन्य कंपनियों से एक कॉर्पस डोनेशन मिला.
यह डोनेशन पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (पीएएल) के 2.065 करोड़ शेयरों के रूप में था, जिनकी कीमत 79.8 करोड़ रुपये थी. इनमें से दो करोड़ शेयर अकेले बालकृष्ण द्वारा दिए गए थे, जिनके पास पतंजलि आयुर्वेद की 98.54% हिस्सेदारी है. संचालन शुरू होने के एक दशक के भीतर पीएएल आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो चुकी है, उसी वित्तीय वर्ष में कंपनी ने 8,136 करोड़ रुपये की बिक्री की थी.
पतंजलि आयुर्वेद के शेयर दिए जाने के बाद, योगक्षेम का पूरा मालिकाना हक पतंजलि सेवा ट्रस्ट को दे दिया गया.
तत्कालीन मीडिया ख़बरों के अनुसार यह रामदेव और उनके सहयोगियों द्वारा स्थापित एक और संस्था है. रामदेव योगक्षेम संस्थान के नॉमिनी शेयरधारक बन गए और उनके नाम पर एक शेयर था.
इस प्रकार, पतंजलि आयुर्वेद के शेयर गिफ्ट करने के 24 घंटे के भीतर, बालकृष्ण ने रामदेव और मुक्तानंद के साथ योगक्षेम का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया.
मूल रूप से जो योगक्षेम के मालिक थे, उनके पास शेयर नहीं रहे, हालांकि वे अगले कुछ महीनों तक कागजात में निदेशक बने रहे.
सार्वजनिक रूप से, रामदेव ने इस रणनीतिक निवेश को जनता और राष्ट्र की सेवा के प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया.
उस समय की एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया, ‘योग गुरु से बिज़नेसमैन बने बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को एक ‘गैर-लाभकारी’ इकाई में बदल दिया जाएगा क्योंकि वह अपने व्यवसायों से होने वाली कमाई से चैरिटी करना चाहती है.’
रिपोर्ट में रामदेव के हवाले से कहा गया है, ‘हम पतंजलि को स्टॉक एक्सचेंजों पर लिस्ट नहीं करेंगे. हम पतंजलि को लोगों के दिलों में लिस्ट करेंगे. हम पतंजलि को एक गैर-लाभकारी संगठन में बदल रहे हैं.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पतंजलि सेवा ट्रस्ट पतंजलि समूह की सभी कंपनियों की मालिक बन जाएगी.
रामदेव के बड़े-बड़े दावे सच हो सकते थे यदि योगक्षेम संस्थान खुद से कोई चैरिटी करता. लेकिन इसने ऐसा नहीं किया. बल्कि बालकृष्ण और रामदेव के अन्य सहयोगियों ने पतंजलि आयुर्वेद में अपने शेयर पार्क करने के लिए इस गैर-लाभकारी कंपनी का उपयोग किया, जबकि दूसरी ओर प्रभावी रूप से वह भारी कमाई करने वाली पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रमुख मालिक बने रहे. और बिज़नेस को चैरिटी में बदलने के रामदेव के दावे धरे के धरे रह गए.
योगक्षेम संस्थान ने साल भर तक योग को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के दो करोड़ शेयर लेकर बैठी रही.
दिलचस्प बात यह है कि दो वित्तीय वर्षों- 2017-18 और 2018-19 तक, योगक्षेम ने पीएएल शेयरों के रूप में मिले कॉर्पस डोनेशन को अपने बही-खातों में दर्शाया. लेकिन पतंजलि आयुर्वेद के वित्तीय रिकॉर्ड में 98.54% शेयरों का मालिक बालकृष्ण को दिखाया गया.
यह तकनीकी रूप से असंगत है कि एक ही शेयर दो संस्थाओं के स्वामित्व में रहें. अंततः दो वित्तीय वर्षों के बाद समूह को इस विसंगति का जवाब देना पड़ा.
इसका जवाब कंपनी की बैलेंस शीट में चकरा देने वाली तकनीकी बातों के बीच छिपा था. आसान भाषा में, इसका सार यह था कि जो शेयर योगक्षेम को गिफ्ट किए गए थे, उन्हीं शेयरों को बालकृष्ण ने लोन लेने के लिए बैंकों के पास भी गिरवी रखा था. गिरवी रखी गई संपत्ति को योगक्षेम संस्थान को सौंपे जाने से बैंक खुश नहीं थे, क्योंकि इस संस्था से उनका कोई संबंध नहीं था. ‘
इसलिए, वित्त वर्ष 2020-21 में बैंकों ने योगक्षेम संस्थान को शेयर छोड़ने को मजबूर कर दिया और कानूनी खामियों का फायदा उठाकर निवेश दूसरी जगह ट्रांसफर करने का पतंजलि समूह का प्रयास विफल हो गया.
जब तक योगक्षेम ने इस जटिल प्रक्रिया को पूरा किया, तब तक दिसंबर 2019 में पतंजलि समूह ने विवादास्पद रूप से रुचि सोया का अधिग्रहण कर लिया. यह कंपनी न्यूट्रेला ब्रांड के लिए जानी जाती थी.
रुचि सोया पर 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था जिसके कारण कंपनी दिवालिया हो गई थी. दिवाला कानून के तहत बैंकरों के पास दो विकल्प थे- कर्ज का कुछ हिस्सा वापस पाने के लिए कोई खरीदार ढूंढें या कंपनी को टुकड़े-टुकड़े करके बेच दें. रामदेव ने मौके का फायदा उठाया और अडानी ग्रुप को पछाड़ते हुए रुचि सोया को खरीद लिया. अडानी ग्रुप आखिरी समय में नीलामी से पीछे हट गया. इसे खरीदारी के लिए एसबीआई और यूनियन बैंक जैसे बैंकों ने पतंजलि कंसोर्टियम को पैसे उधार दिए. दिसंबर 2019 में पतंजलि की 4,350 करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी मिल गई और जून 2022 में रुचि सोया पतंजलि फूड्स बन गई.
इसके बाद, रुचि सोया में किए गए रामदेव और उनके सहयोगियों के निवेश को पार्क करने में योगक्षेम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वित्त वर्ष 2020-21 में पतंजलि आयुर्वेद के शेयरों को वापस करने के बाद, योगक्षेम की पूंजी 79 करोड़ रुपये कम हुई. उसी साल, रामदेव के एक और गैर-लाभकारी संगठन दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ने योगक्षेम को रुचि सोया के 42 करोड़ रुपये मूल्य के 6 करोड़ शेयर गिफ्ट किए. दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट भी रुचि सोया का अधिग्रहण करने वाले पतंजलि कंसोर्टियम का ही हिस्सा था. इसके साथ ही योगक्षेम को रुचि सोया में 20.28% की हिस्सेदारी मिल गई.
इसी दौरान दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ने पतंजलि सेवा ट्रस्ट से योगक्षेम के 60% शेयर खरीदे और इस गैर-लाभकारी संस्था का सर्वाधिक हिस्सा (50% से अधिक) रखने वाला शेयरधारक बन गया.
मुनाफा कमाने वाली किसी कंपनी के शेयर इस तरह इधर से उधर ट्रांसफर करने से कंपनी के वास्तविक मालिकों और लाभ प्राप्त करने वालों की पहचान छिपाने में मदद मिलती है.
योगक्षेम संस्थान का स्वामित्व लगभग हर साल बदलता रहा. वित्त वर्ष 2020-21 में दिव्य योग मंदिर को कंपनी में 60% हिस्सेदारी मिलने के एक साल बाद, उसने इसे दूसरे पतंजलि ट्रस्ट, पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया. बदले में, इस ट्रस्ट ने अगले वित्तीय वर्ष में अपनी हिस्सेदारी एक अन्य गैर-लाभकारी कंपनी पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क्स प्राइवेट लिमिटेड को दे दी.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आचार्य बालकृष्ण और योगक्षेम संस्थान को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी, जिसमें पूछा गया है कि किन कारणों से यह गैर-लाभकारी संस्था चैरिटी करने में विफल रही, इसने केवल निवेश क्यों किया, और इसके स्वामित्व में बार-बार बदलाव क्यों हुआ जिससे इसे अन्य संस्थाओं से डोनेशन मिलता रहा. इसके अलावा, योगक्षेम संस्थान को पतंजलि आयुर्वेद, पतंजलि फूड्स और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट द्वारा मिले शेयरों के डोनेशन और इसके बाद संस्था के स्वामित्व में हुए बदलाव के बारे में भी सवाल पूछे गए हैं. साथ ही, इन सभी की ई-मेल कॉपी रामदेव के प्रवक्ता और आस्था टीवी के राष्ट्रीय प्रमुख एसके तिजारावाला को भी भेजी. उन्होंने फोन पर बात की और उनके कहे अनुसार उन्हें वॉट्सऐप पर प्रश्न भी भेजे गए. हालांकि, अभी तक उनसे भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
योगक्षेम संस्थान को चैरिटेबल संस्था होने के कारण भारत के आयकर अधिनियम, 1961 के तहत टैक्स में छूट मिलती है. इस नियम के तहत, यदि कंपनी अपनी आय का कम से कम 85% चैरिटी कार्यों में लगाती है, तो उसे आयकर देने की जरूरत नहीं है. यदि ऐसी गैर-लाभकारी संस्था को किसी और कंपनी के शेयर मिलते हैं, तो इसे उसी वित्तीय वर्ष के भीतर उन शेयरों को बेचकर उससे मिला पैसा टैक्स कानून द्वारा निर्दिष्ट प्रक्रिया के तहत जमा करना होगा.
योगक्षेम ने योग को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया. बल्कि वित्त वर्ष 2022-23 में रुचि सोया के शेयरों पर उसे 30 करोड़ रुपये का डिविडेंड मिला-यानी कमाई हुई.
इस वित्तीय वर्ष में इसने रुचि सोया के शेयरों से प्राप्त आय का लगभग 60%, यानी 19.43 करोड़ रुपये, अज्ञात संस्थाओं को दान देने में खर्च किए.
नतीजतन, उसे इस डिविडेंड पर 10.48 करोड़ रुपये का आयकर देना पड़ा. लेकिन, इससे योगक्षेम संस्थान का उपयोग नहीं बदला. कंपनी दावा करती रही है कि वह एक चैरिटेबल संस्था है. और सरकार ने उसका कर-मुक्त दर्जा जारी रखा.
कंपनी के नवीनतम वित्तीय रिकॉर्ड के अनुसार, रुचि सोया (अब पतंजलि फूड्स) में इसकी 16.52% हिस्सेदारी बनी रही.
रामदेव का कारोबार लगातार फल-फूल रहा है. जबकि योगक्षेम संस्थान जैसी संदिग्ध कंपनियां, जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते, इस सफलता का मुख्य स्रोत बनी हुई हैं.
(यह रिपोर्ट मूल रूप से द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्रकाशित हुई है.)
साभार- द वायर
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