04-May-2024

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तात्‍या भाई, राजेश भाई आपकी कमी का अहसास हर पल, हर रोज होता है...

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अप्रैल 2021 का महिना बहुत ही भारी था, पहले 17 अप्रैल को निर्मल पिंगले ( तात्‍या भाई ) हमें छोड़ गये और जैसे- तैसे हम सभी अपने आप को संभाल रहे थे कि वो भारी पल आया जिसने हमसे प्रिय, मित्र यारों के यार राजेश भाई (तिवारी) हमसे छीन लिया। 2 वर्ष बीत गये लेकिन किसी के भी दिलो- दिमाग से राजेश भाई एवं तात्‍या भाई की यादें नहीं निकल रही। यहां यह कहना चाहता हूं कि राजेश भाई एवं तात्‍या भाई इस भरी दुनियां में हम मित्रों को क्‍यों तन्‍हा छोड़ गये...। 

 17 अप्रैल और 1 मई 2021 को 2 वर्ष हो गये, इस बीच कई ऐसे क्षण आये जब लगभग सभी को दोनों की कमी खली। चाहै, अच्‍छा समय हो या फिर बुरा समय हो दोनों की समन्‍वय क्षमता सभी को खली। दोनों ने पहले अपनी माताजी को खोया और फिर दोनों ही अलविदा कह गये। पारिवारिक आयोजनों पर तो अब लगभग विराम ही लग गया हैं। इस बीच कई परिवर्तन आए। दोनों के बच्‍चों ने अपनी जिम्‍मेदारियों को समझा। तात्‍या भाई की बड़ी बेटी प्रिया तो पहले ही से अपनी जिंदगी को आगे बढ़ा चुकी थी। देश में नहीं है, लेकिन विदेश में बैठकर  मां और छोटी बहन को को- आर्डिनेट कर रही है। वहीं से बैठकर लगभग बेटे के रूप में परिवार को संभाल रही है। छोटी बेटी रीमा भी अब शिक्षक बन गयी है। भाभी श्‍वेता ने स्‍वैच्छिक सेवानिवृति का मन बनाकर बैठी है। अब उनका पूरा ध्‍यान अपनी नातिन पर लगा रही है। रीमा सुबह से ही‍ अपनी जॉब के लिए निकल जाती है। भाभी भी दिनभर नातिन को संभाल कर नानी का फर्ज निभा रही है। यहां यह कहें कि उन्‍होंने जिम्‍मेदािरियों को बखूबी ओड़ लिया है।  

पहले तात्‍या भाई फिर सबके सुख- दु:ख में सबसे आगे रहने और वो सभी काम करना जो घर का सबसे बड़ा बेटा करता है, राजेश भाई हमको छोड़कर चले गये। कोरोना काल से पहले से ही राजेश भाई बोनी को लेकर चिंतित रहते थे। शहर से दूर नौकरी कर रहे बोनी भाई को सर्विस में कई प्रकार की दिक्‍कत रहती थी। लेकिन उसको इस बात का अहसास न हो कि पिता अपने पुत्र को लेकर परेशान रहते है, उसे हौसला देते रहते और खूद बोनी के लिए क्‍या किया जा सकता है दिन- रात सोचना उनका काम था। चुनमुन की फ्रिक भी कम नहीं थी। उसे भी हौसला देना। मुंबई में जाब लगी तो पहुंच गये वहां। लेकिन फिर वापिस ले आए। भोपाल में ही अपनी नजरों के सामने रखा। रंजना भाभी के स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर उन्‍होंने क्‍या नहीं किया। साल में दो बार पहले चेकअप कराने जाते थे, फिर एक बार जाने लगे। भाभी को चेकअप के लिए ले जाते तो अपने मित्रों में से किसी को परिवार सहित साथ ले जाना चेकअप के बाद घूमने का प्रोगाम बनाना। यह उनकी सोच में शामिल था।

आखिरकार, राजेश भाई के जब स्‍वस्‍थ्‍य होने का आभास होने लगा तो अचानक 1 मई 2021 को छाेड़कर जाने की खबर ने सबको तोड़ का रख दिया। बच्‍चों ने घर में आई आपदा को किसी तरह संभाला। पहलेे दादी को विदा किया और फिर राजेश भाई हम सबे बीच नहीं रहे। यह अफसोस आज भी है कि उनके अंतिम संस्‍कार में शामिल नहीं हो सका। खैर समय की नीयति को बदलना संभव नहीं है, इसलिए कुछ किया भी नहीं जा सकता। आज उनके दोनों बच्‍चें अपनी जिम्‍मेदारी को निभा रहे है। अपने काम के साथ भाभी को भी संभाल रहे है। बोनी ने कोरोना काल में मां के पास रहने के लिए भोपाल में ही जॉब किया, लेकिन फिर मुंबई के पास सिविल इंजीनियर की भूमिका में काम संभाल लिया है। पिता की पुण्‍य तिथि पर भोपाल आया हुआ है। चुनमुन भी भोपाल में अपनी नौकरी को अंजाम दे रही है। दोनों बच्‍चों ने अपनी मां के दो हाथ बनकर परिवार की जिम्‍मेदारी संभाल रखी हैं।

अंत में यहीं कहूंगा कि दोनों भाईयों आपकी कमी हम सबको बहुत खलती है। यूं तो नहीं जाना था.......

राजेन्‍द्र धनोतिया और सभी मित्रगणों की ओर से अश्रुपूर्ण श्रृद्धाजंली

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